सुना था-
जो आया है वो जाएगा,
यहां कोई अमर नहीं।
पढ़ा था-
मृत्यु अटल सत्य है।
समझा था-
राजा राणा छत्रपति हाथिन के असवार
मरना सबको एक दिन अपनी-अपनी बार।
जाना था-
शरीर और आत्मा का भेद विज्ञान
कर्म सिद्धांत।
किंतु रहस्य ही रहे,
मृत्यु से छिपकर उससे बचने के उपाय ।
वर्तमान में उद्घाटित्
इस रहस्य से अभिभूत हुई मैं भी
नजरबंद हूं घर की चारदीवारी में।
खेल रही हूं आइस-पाइस
चोर बनाकर यमराज को।
उसकी ढंपी आंखों से छुपे रहते हुए
कैदखाने में समय हो चला है रोमांच भरा।
जाने क्यूं याद आ रही है कहानी
बिगुलवाले उस करिश्माई किरदार की,
जो सदियों पहले
आया था
चूहों के उत्पात से नष्ट होते देश को बचाने
और अपने बिगुल की आवाज से
चूहों को हिप्नोटाइज़ कर
उतार आया था
गहरे पानी वाली उफनती हुई नदी में।
शायद इस बार ,
उतर जाए कोरोनावायरस भी
अंधे कुएं में
और यमराज चोर ही बना रह जाए।
आइस पाइस खेलते
इस उम्र में भी
सांस रोक लंबे समय तक छिपे रहने का हुनर
मुझमें बाकायदा जीवित है
यह जानकर
बहुत खुश हूं मैं।
अब, शेष है सिर्फ
बिगुलवाले का करिश्मा देखना।